आर. माधवन: ‘अपनी जड़ों और परंपराओं से जुड़ी है तेलुगु इंडस्ट्री’

हिंदी और साउथ इंडस्ट्री की तुलना पर माधवन के विचार

हाल ही में प्रसिद्ध अभिनेता आर. माधवन ने बॉलीवुड और साउथ फिल्म इंडस्ट्री के बीच बढ़ते अंतर और उनके विकास पर अपने विचार साझा किए। माधवन, जो हिंदी और साउथ दोनों इंडस्ट्री में अपनी खास पहचान बना चुके हैं, ने बताया कि दोनों क्षेत्रों की अपनी-अपनी खूबियां और चुनौतियां हैं।

माधवन ने कहा, “साउथ फिल्म इंडस्ट्री, खासतौर पर तेलुगु और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री, अपनी जड़ों और परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है। यह उनकी फिल्मों में साफ झलकता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि इन इंडस्ट्रीज में कहानी और कंटेंट पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जो दर्शकों के साथ सीधे जुड़ने में मदद करता है।

साउथ का सफलता का मंत्र

माधवन ने साउथ इंडस्ट्री की सफलता का श्रेय उनकी मेहनत और परंपराओं से जुड़े रहने को दिया। उन्होंने बताया कि साउथ की फिल्मों में स्थानीय संस्कृति और मूल्यों को उकेरा जाता है, जो दर्शकों के दिलों को छू लेता है।

उदाहरण के तौर पर, तेलुगु और तमिल फिल्मों में अक्सर पारिवारिक मूल्य, परंपराएं और संघर्ष दिखाए जाते हैं, जो हर वर्ग के दर्शकों को आकर्षित करते हैं। “यही कारण है कि साउथ की फिल्में केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराही जाती हैं,” माधवन ने कहा।

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की चुनौतियां

बॉलीवुड के बारे में बात करते हुए माधवन ने कहा कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सामने नई चुनौतियां हैं। उन्होंने बताया कि बॉलीवुड में अब कंटेंट-बेस्ड फिल्मों का चलन बढ़ गया है, लेकिन इस बदलाव के साथ-साथ एकरूपता का अभाव भी देखने को मिलता है। माधवन ने कहा, “हिंदी फिल्मों में बड़े बजट के बावजूद कई बार कहानी या प्रासंगिकता की कमी रह जाती है।”

उन्होंने यह भी बताया कि जहां साउथ इंडस्ट्री अपनी जड़ों से जुड़ी रहती है, वहीं बॉलीवुड कई बार पश्चिमी प्रभावों के कारण अपनी मौलिकता खो देता है। “हमें अपनी पहचान को बनाए रखने की जरूरत है,” माधवन ने जोर देकर कहा।

पैन इंडिया फिल्मों का बढ़ता प्रभाव

माधवन ने पैन इंडिया फिल्मों के बढ़ते ट्रेंड पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “यह एक अच्छा संकेत है कि साउथ की फिल्में अब हिंदी पट्टी और देशभर में लोकप्रिय हो रही हैं। इससे भारतीय सिनेमा की एकता और विविधता का प्रमाण मिलता है।”

उन्होंने एस.एस. राजामौली की ‘आरआरआर’ और प्रशांत नील की ‘केजीएफ’ जैसी फिल्मों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन फिल्मों ने भारतीय सिनेमा को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है। “इन फिल्मों ने दिखा दिया कि भारतीय सिनेमा में असीमित संभावनाएं हैं।”

माधवन का व्यक्तिगत अनुभव

अपने अनुभव साझा करते हुए माधवन ने कहा, “मैंने दोनों इंडस्ट्रीज में काम किया है और मैंने सीखा है कि हर इंडस्ट्री का अपना तरीका होता है।” उन्होंने बताया कि साउथ में अनुशासन और पेशेवर रवैये का काफी महत्व है, जबकि बॉलीवुड में रचनात्मकता और ग्लैमर पर ज्यादा जोर दिया जाता है।

बदलाव के संकेत

माधवन ने यह भी कहा कि भारतीय सिनेमा में बदलाव के संकेत साफ दिख रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब दोनों इंडस्ट्रीज एक-दूसरे से प्रेरणा ले रही हैं और इससे भारतीय सिनेमा का भविष्य उज्जवल है।

उन्होंने अपनी बात को समाप्त करते हुए कहा, “हमें यह समझना चाहिए कि भारतीय सिनेमा केवल बॉलीवुड या साउथ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर को दिखाने का माध्यम है।”

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