उत्तराखंड की फौजी बेटी किरन पुंडीर ने अपने जीवन और विवाह समारोह के माध्यम से परंपरा एवं नैतिक मूल्यों को उजागर करते हुए एक नई मिसाल कायम की है। वर्तमान में भारतीय सेना में सेवा देते हुए, किरन पुंडीर जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं, पर उनके दिल में हमेशा अपने पहाड़ी परिवेश और सांस्कृतिक विरासत की गर्माहट रही है। यह विशेष लेख उनके विवाह समारोह की उन विशेषताओं पर प्रकाश डालता है, जहाँ आधुनिकता के चलन को पीछे छोड़ पारंपरिक स्वाद एवं संस्कार को प्राथमिकता दी गई।
विवाह समारोह की विशेषताएँ
भारतीय सेना के जवान सुरेंद्र के साथ उनके विवाह समारोह में आधुनिक कॉकटेल पार्टी की बजाय पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों का आयोजन किया गया। चमोली जिले के तोरती गांव के सुरेंद्र के साथ इस विवाह में, किरन ने अपने फैसले से यह संदेश दिया कि शादी सिर्फ आधुनिक उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का जश्न भी होती है। समारोह में किसी भी प्रकार के शराब या कॉकटेल का प्रयोग न करके, उन्होंने एक नैतिक संदेश प्रस्तुत किया कि पारंपरिक रस्में और सांस्कृतिक मूल्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
पारंपरिक स्वाद की महत्ता
किरन पुंडीर का यह कदम केवल एक विवाह समारोह तक सीमित नहीं रहा। उनके द्वारा चुनी गई परंपरागत व्यंजन, पहाड़ी संस्कृति की विविधता और स्वाद का प्रतीक हैं। पहाड़ी व्यंजन, जो अक्सर प्राकृतिक सामग्रियों और प्राचीन रेसिपीज पर आधारित होते हैं, समारोह में एक जीवंत अनुभव प्रस्तुत करते हैं। इस अनूठी पहल ने न केवल उनके परिवार और आस-पास के समुदाय में सकारात्मक प्रभाव डाला, बल्कि अन्य फौजी परिवारों के लिए भी एक प्रेरणा का स्रोत बना।
प्रेरणा और संदेश
इस अनूठे विवाह समारोह का एक महत्वपूर्ण पहलू था ‘शराब नहीं, संस्कार दीजिए’ मुहिम। रॉड्स संस्था रानीचौरी द्वारा संचालित इस मुहिम से प्रेरणा लेते हुए किरन ने अपने विवाह में शराब का बहिस्कार किया। रॉड्स संस्था के अध्यक्ष सुशील बहुगुणा द्वारा चलाई जा रही इस मुहिम का उद्देश्य समाज में पारंपरिक मूल्यों और संस्कारों की पुनर्स्थापना करना है। उनके इस फैसले के मद्देनजर, उन्हें संस्था की ओर से प्रमाणपत्र से सम्मानित किया गया, जो इस बात का प्रतीक है कि नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना समाज में कितनी अहमियत रखता है।
सामाजिक प्रभाव और संदेश
किरन पुंडीर का यह कदम आज के दौर में जहाँ युवा पीढ़ी आधुनिकता और ग्लोबलाइज़ेशन की ओर आकर्षित हो रही है, एक सशक्त संदेश देता है। उनका विवाह समारोह इस बात का प्रमाण है कि परंपरा और संस्कार आधुनिकता के साथ भी चलते रह सकते हैं। समाज में फैली कुप्रथाओं और बेड़ियों को तोड़ते हुए, इस प्रकार के फैसले अन्य फौजी बेटियों और युवाओं के लिए एक आदर्श बन गए हैं। पहाड़ी संस्कृति की आत्मा और उसकी मिठास को संरक्षित करते हुए, उनके इस कदम ने यह सिद्ध कर दिया कि नैतिकता और पारंपरिकता को अपनाना समय की मांग है।
फौजी जीवन में बदलाव की झलक
भारतीय सेना में सेवा करते हुए, किरन पुंडीर ने अपने निजी जीवन में भी एक नया अध्याय लिखा है। फौजी जीवन में अनेक चुनौतियाँ और आधुनिकता के प्रभाव होते हैं, परन्तु उन्होंने अपने पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा। उनके परिवार द्वारा पूर्ण समर्थन मिलने से यह भी स्पष्ट होता है कि सामाजिक बदलाव की शुरुआत घर से होती है। उनके इस फैसले ने न केवल उनके परिवार में बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में भी सकारात्मक बदलाव की लहर दौड़ा दी है।
किरन पुंडीर का विवाह समारोह हमें याद दिलाता है कि जीवन के महत्वपूर्ण अवसरों पर परंपरा और संस्कार को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। उनके इस अनूठे कदम ने न केवल भारतीय सेना के भीतर, बल्कि सम्पूर्ण समाज में नैतिकता एवं सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का संदेश दिया है। उनके द्वारा अपनाई गई इस पहल को देखकर कई अन्य फौजी परिवार और समाज के सदस्य प्रेरित हो रहे हैं कि वे भी आधुनिकता के साथ अपने सांस्कृतिक मूल्यों को प्राथमिकता दें। इस प्रकार, किरन पुंडीर न केवल एक कुशल सैनिक हैं, बल्कि एक ऐसे बदलाव की मिसाल भी हैं, जो समाज में सकारात्मक संदेश फैलाने में सक्षम है।
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