Day 2 : देहरादून में राष्ट्रीय सम्मेलन: पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को जोड़ने का अनूठा प्रयास


परिचय

“Converging Paths: Bridging Traditional Practices & Modern Science for a Sustainable Future” के विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में, देशभर के विद्वानों, शोधकर्ताओं और छात्रों ने देहरादून के Dolphin (PG) Institute of Biomedical & Natural Sciences में भाग लिया। उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (USERC) के सहयोग से रिसर्च एडवाइजरी कमेटी (RAC) द्वारा आयोजित इस सम्मेलन का उद्देश्य पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के सम्मिलन को प्रोत्साहित करना था।


पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय: एक संक्षिप्त अवलोकन

आज के युग में, स्थिरता प्राप्त करने के लिए पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का सम्मिलन आवश्यक होता जा रहा है। इस सम्मेलन ने इस आवश्यकता पर जोर देते हुए सांस्कृतिक विरासत को वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ जोड़ने के लाभों पर चर्चा की।

दूसरे दिन की मुख्य बातें: ज्ञान और विचारों का आदान-प्रदान

दूसरे दिन की शुरुआत शिक्षा, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक संरक्षण को विज्ञान के क्षेत्र में समेकित करने के विषय पर चर्चा से हुई।

तकनीकी सत्र III: शैक्षिक दृष्टिकोण, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक संरक्षण

सम्मेलन के तीसरे तकनीकी सत्र में शिक्षण विधियों, तकनीकी नवाचारों, और सांस्कृतिक संरक्षण को विज्ञान के माध्यम से कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है, इस पर गहन चर्चा हुई।

  • प्रोफेसर डॉ. रामविनय का व्याख्यान
    डीएवी पीजी कॉलेज, देहरादून के प्रोफेसर डॉ. रामविनय ने संस्कृत ग्रंथों में निहित ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच सहजीविता पर प्रकाश डाला। उनके व्याख्यान ने दर्शाया कि किस प्रकार प्राचीन संस्कृत ज्ञान और विज्ञान में तालमेल बैठाकर हम नई संभावनाओं का सृजन कर सकते हैं।
  • डॉ. एस.बी.एस. पांडे का व्याख्यान
    कृषि वानिकी विशेषज्ञ, डॉ. एस.बी.एस. पांडे ने आधुनिक कृषि तकनीकों और पारंपरिक कृषि पद्धतियों के बीच एक सेतु के रूप में कृषि वानिकी की भूमिका पर प्रकाश डाला। उनका व्याख्यान सतत कृषि के महत्व पर केंद्रित था, जिसमें जैव विविधता का संरक्षण, मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना और स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करना शामिल है।

पैनल चर्चा: सांस्कृतिक ज्ञान और विज्ञान का मेल

इन व्याख्यानों के बाद एक पैनल चर्चा आयोजित की गई, जिसमें विभिन्न विद्वानों ने सांस्कृतिक ज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान के महत्व पर चर्चा की। पैनल ने इस बात पर जोर दिया कि पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर, जब वैज्ञानिक अनुसंधान में शामिल किए जाते हैं, तो स्थिरता के लिए अभिनव समाधान उत्पन्न कर सकते हैं।

समापन सत्र और सम्मेलन के परिणाम

समापन सत्र में दो दिवसीय सम्मेलन की उपलब्धियों का सम्मान किया गया। सम्मेलन की संयोजक प्रोफेसर वर्षा पर्चा ने आयोजन की रिपोर्ट प्रस्तुत की और ज्ञान के आदान-प्रदान और विचारों के साझा करने की सफलता पर प्रकाश डाला। सत्र में सहभागियों ने पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान के समन्वय में नई खोजों के प्रति अपने संकल्प को दोहराया।


प्रशंसा और पुरस्कार: पोस्टर एवं मौखिक प्रस्तुतियों में उत्कृष्टता का सम्मान

सम्मेलन का एक प्रमुख आकर्षण उत्कृष्ट शोध के लिए पोस्टर और मौखिक प्रस्तुतियों के लिए पुरस्कार प्रदान करना था, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के प्रतिभागियों के नवाचारों को सम्मानित किया गया।

पोस्टर प्रस्तुति पुरस्कार

संकाय एवं शोधकर्ता श्रेणी

  1. प्रथम स्थान: डॉ. प्रभाकर मानोरी, डीआईबीएनएस – ₹3,000
  2. द्वितीय स्थान: श्री संजय तमता (पीएच.डी. शोधकर्ता), डीआईबीएनएस – ₹2,000
  3. तृतीय स्थान: सुश्री स्वाति (पीएच.डी. शोधकर्ता), एसजीआरआर एवं सुश्री विजय लक्ष्मी (पीएच.डी. शोधकर्ता), एसजीआरआर – ₹1,000 प्रत्येक

छात्र श्रेणी

  1. प्रथम स्थान: सुश्री दीक्षा चौधरी और सुश्री दिव्या शर्मा, एसबीएस विश्वविद्यालय – ₹3,000
  2. द्वितीय स्थान: सुश्री भूमि भट्ट एवं सुश्री मुस्कान अधिकारी और सुश्री अंजलि तोलिया, एसबीएस विश्वविद्यालय – ₹2,000 प्रत्येक
  3. तृतीय स्थान: श्री शिवम शर्मा, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय – ₹1,000

विशिष्ट अतिथियों का संदेश: उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रेरणादायक विचार

सम्मेलन में उपस्थित प्रमुख अतिथियों ने अपने प्रेरणादायक विचार साझा किए और प्रतिभागियों को स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया।

  • विशिष्ट अतिथि अरविंद गुप्ता
    डॉल्फिन (पीजी) इंस्टीट्यूट के चेयरमैन अरविंद गुप्ता ने सभी प्रतिभागियों को वैज्ञानिक अनुसंधान में सामाजिक दृष्टिकोण बनाए रखने और जिम्मेदार वैज्ञानिक अभ्यासों के माध्यम से सतत विकास को प्रोत्साहित करने की अपील की।
  • मुख्य अतिथि डॉ. जगमोहन सिंह राणा
    उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जगमोहन सिंह राणा ने अपनी विचारशील व्याख्यान में नैतिक अनुसंधान और आधुनिक विज्ञान में पारंपरिक ज्ञान के समावेशन के महत्व पर जोर दिया।

प्रमुख उपस्थिति और विशिष्ट अतिथि

सम्मेलन में देशभर के विभिन्न संस्थानों से आए शिक्षकों, शोधकर्ताओं और पेशेवरों ने भाग लिया, जिनमें शामिल थे:

  • डॉ. शैलजा पंत, डॉल्फिन इंस्टीट्यूट की प्राचार्य
  • सम्मेलन की संयोजक प्रोफेसर वर्षा पर्चा
  • उल्लेखनीय शोधकर्ताओं जैसे डॉ. श्रुति शर्मा, डॉ. दीपक कुमार, डॉ. प्रभात सती और अन्य कई विद्वान जिन्होंने चर्चाओं और ज्ञान के आदान-प्रदान में सक्रिय भागीदारी की।

निष्कर्ष

देहरादून में आयोजित “Converging Paths: Bridging Traditional Practices & Modern Science for a Sustainable Future” सम्मेलन ने प्रतिभागियों के भीतर प्राचीन और आधुनिक ज्ञान प्रणालियों के बीच सेतु बनाने के लिए एक नई जागरूकता उत्पन्न की। सम्मेलन ने सांस्कृतिक धरोहर और वैज्ञानिक अनुसंधान को जोड़कर सतत भविष्य की दिशा में एक प्रभावशाली पहल की।

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