उत्तराखंड के घरुरी गांव की दुर्दशा – जान जोखिम में डाल स्कूल जाते बच्चे

77 सालों से पुल का इंतजार

भारत को स्वतंत्र हुए 77 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के घरुरी गांव के निवासियों को अभी भी बुनियादी सुविधाओं का इंतजार है। इस गांव में न कोई पुल है और न ही सुरक्षित परिवहन की सुविधा। गांव के बच्चे रोज़ाना अपनी जान हथेली पर रखकर स्कूल जाते हैं। यह समस्या केवल छात्रों की नहीं बल्कि गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों के लिए भी किसी नरक से कम नहीं है।

ट्रॉली ही है आवागमन का सहारा

घरुरी गांव के निवासियों को गांव से बाहर जाने के लिए नदी पार करनी पड़ती है, लेकिन वहां पुल के अभाव में ट्रॉली ही उनका एकमात्र सहारा है। इस ट्रॉली को नदी के एक किनारे खड़े लोग रस्सी खींचकर आगे बढ़ाते हैं। यह न केवल असुरक्षित है बल्कि थका देने वाला भी है।

विद्यार्थियों का संघर्ष

घरुरी गांव के छात्र रोज़ ट्रॉली से नदी पार करने के बाद करीब दो किलोमीटर की यात्रा तय कर स्कूल पहुंचते हैं। वर्तमान में बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैं, जिसके कारण विद्यार्थियों को 2.5 किलोमीटर की अतिरिक्त पैदल यात्रा करनी पड़ रही है। बारिश के मौसम में यह यात्रा और भी खतरनाक हो जाती है क्योंकि ट्रॉली अस्थिर हो जाती है और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

गर्भवती महिलाओं और बीमारों की मुश्किलें

अगर किसी महिला को प्रसव के लिए अस्पताल ले जाना हो या किसी बीमार व्यक्ति को इलाज के लिए बाहर जाना हो, तो उन्हें भी ट्रॉली का ही सहारा लेना पड़ता है। यह स्थिति काफी खतरनाक हो सकती है क्योंकि ट्रॉली की रस्सी खींचने में काफी समय लगता है और हर समय गिरने का डर बना रहता है।

पुल निर्माण की मांग

सरकार ने 2024 में यहां एक नया पैदल पुल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। स्थानीय लोगों की मांग है कि जब तक पुल नहीं बन जाता, तब तक पीएसी के जवानों को यहां तैनात किया जाए ताकि वे जरूरतमंदों को सुरक्षित ट्रॉली पार करने में मदद कर सकें।

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